Wednesday 16 July 2014

परिवहन


राजमार्ग का विस्तार

केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि राज्यों की 7,200 किलोमीटर सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग में शामिल किया जाए। इस तरह राष्ट्रीय राजमार्गो की कुल लंबाई लगभग 87,000 किलोमीटर हो जाएगी। यह आंकड़ा देश के क्षेत्रफल और आबादी को देखते हुए बहुत कम है, इसलिए हमें उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाली सरकार भी इस दिशा में ज्यादा सक्रिय होगी। सड़कों की कुल लंबाई के लिहाज से हमारा देश दुनिया में दूसरे नंबर पर है। हमारे यहां चीन जैसे विशाल देश से भी ज्यादा सड़कें हैं, लेकिन अगर सड़कों की गुणवत्ता की बात की जाए, तो हम लोग दुनिया के सबसे पिछड़े देशों में आते हैं। हमारे देश में कच्ची या मौसमी सड़कें ज्यादा हैं, पक्की और चौड़ी सड़कों का अनुपात बहुत कम है। इसमें भी अगर यह जाेड़ लिया जाए कि फोर लेन सड़कों में से कितनी अच्छी स्थिति में हैं, तो यह अनुपात और भी गिर जाएगा। राष्ट्रीय या राज्य राजमार्गो में भी हजारों किलोमीटर सड़कें बुरी हालत में हैं। फिर भी राजमार्ग बन जाने के बाद इस बात की संभावना काफी होती है कि सड़क की स्थिति सुधर जाए, इसलिए जितनी ज्यादा सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग बन जाएं, उतना ही बेहतर होगा। फिलहाल भारत में लगभग 47 लाख किलोमीटर सड़कें हैं, जिनमें से एक लाख किलोमीटर भी राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं हैं। सड़कों का निर्माण और विस्तार लंबे वक्त तक भारतीय प्रशासन तंत्र की प्राथमिकताओं में नहीं रहा। भारत में वाहन उद्योग पर कड़े प्रतिबंध थे, इसलिए न वाहनों की तादाद ज्यादा बढ़ती थी, न सड़कों का विस्तार होता था। जब भारत में वाहन उद्योग का उदारीकरण हुआ और सड़कों पर ज्यादा वाहनों का दबाव महसूस होने लगा, तब सड़कों को आधुनिक बनाने की भी जरूरत महसूस हुई। इस नजरिये से अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में काफी तरक्की हुई, क्योंकि प्रधानमंत्री खुद इसमें दिलचस्पी ले रहे थे। देश के चारों महानगरों को राजमार्गो से जोड़ने की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना इसी दौरान शुरू हुई। मगर संप्रग के राज में राष्ट्रीय राजमार्गो के विस्तार की गति धीमी पड़ गई, हालांकि कई राज्यों ने अपने यहां बेहतर सड़कें बनाने को प्राथमिकता दी। चूंकि ‘बीएसपी’ यानी बिजली-सड़क-पानी कई चुनावों में मुख्य मुद्दे बनकर आए, इसलिए भी सरकारों पर सड़कें बेहतर बनाने के लिए दबाव पड़ा। सड़कें बनाना अर्थव्यवस्था को तेज करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। सड़क निर्माण से खनन, सीमेंट, इस्पात जसे उद्योगों को भी प्रोत्साहन मिलता है और बड़े पैमाने पर कुशल और अकुशल रोजगार पैदा होते हैं। मगर सड़कों का विस्तार इसलिए मुश्किल भी है, क्योंकि इससे जमीन अधिग्रहण और पर्यावरण की पेचीदा उलझनों से गुजरना पड़ता है। इसीलिए अगर इस ताजा घोषणा को छोड़ दिया जाए, तो संप्रग के पूरे कार्यकाल में राष्ट्रीय राजमार्गों में सिर्फ 10,000 किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई। राष्ट्रीय राजमार्गो के निर्माण में इन दिनों निजी-सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) का मॉडल बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है। लेकिन पीपीपी मॉडल को अगर कामयाब होना है, तो इसमें पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है। वरना
तरह-तरह के विवाद और घोटाले पैदा होंगे। महाराष्ट्र में टोल टैक्स विरोधी आंदोलन भले ही राजनीति से प्रेरित हो, लेकिन यह सरकार को भी मानना पड़ा कि सड़क बनाने और टोल टैक्स वसूलने के अनुबंधों में भारी गड़बड़ियां हैं। दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर गुड़गांव में टोल प्लाजा हटाने का फैसला भी ऐसे ही विवादों से पैदा हुआ है। ऐसे कई विवाद देश भर में राजमार्गो को लेकर हैं। अगर राजमार्गो का सचमुच विस्तार करना है, तो घोटालों के रास्ते बंद करना जरूरी है।
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राजमार्ग का विस्तार


केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि राज्यों की 7,200 किलोमीटर सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग में शामिल किया जाए। इस तरह राष्ट्रीय राजमार्गो की कुल लंबाई लगभग 87,000 किलोमीटर हो जाएगी। यह आंकड़ा देश के क्षेत्रफल और आबादी को देखते हुए बहुत कम है, इसलिए हमें उम्मीद करनी चाहिए कि आने वाली सरकार भी इस दिशा में ज्यादा सक्रिय होगी। सड़कों की कुल लंबाई के लिहाज से हमारा देश दुनिया में दूसरे नंबर पर है। हमारे यहां चीन जैसे विशाल देश से भी ज्यादा सड़कें हैं, लेकिन अगर सड़कों की गुणवत्ता की बात की जाए, तो हम लोग दुनिया के सबसे पिछड़े देशों में आते हैं। हमारे देश में कच्ची या मौसमी सड़कें ज्यादा हैं, पक्की और चौड़ी सड़कों का अनुपात बहुत कम है। इसमें भी अगर यह जाेड़ लिया जाए कि फोर लेन सड़कों में से कितनी अच्छी स्थिति में हैं, तो यह अनुपात और भी गिर जाएगा। राष्ट्रीय या राज्य राजमार्गो में भी हजारों किलोमीटर सड़कें बुरी हालत में हैं। फिर भी राजमार्ग बन जाने के बाद इस बात की संभावना काफी होती है कि सड़क की स्थिति सुधर जाए, इसलिए जितनी ज्यादा सड़कें राष्ट्रीय राजमार्ग बन जाएं, उतना ही बेहतर होगा। फिलहाल भारत में लगभग 47 लाख किलोमीटर सड़कें हैं, जिनमें से एक लाख किलोमीटर भी राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं हैं।
सड़कों का निर्माण और विस्तार लंबे वक्त तक भारतीय प्रशासन तंत्र की प्राथमिकताओं में नहीं रहा। भारत में वाहन उद्योग पर कड़े प्रतिबंध थे, इसलिए न वाहनों की तादाद ज्यादा बढ़ती थी, न सड़कों का विस्तार होता था। जब भारत में वाहन उद्योग का उदारीकरण हुआ और सड़कों पर ज्यादा वाहनों का दबाव महसूस होने लगा, तब सड़कों को आधुनिक बनाने की भी जरूरत महसूस हुई। इस नजरिये से अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में काफी तरक्की हुई, क्योंकि प्रधानमंत्री खुद इसमें दिलचस्पी ले रहे थे। देश के चारों महानगरों को राजमार्गो से जोड़ने की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना इसी दौरान शुरू हुई। मगर संप्रग के राज में राष्ट्रीय राजमार्गो के विस्तार की गति धीमी पड़ गई, हालांकि कई राज्यों ने अपने यहां बेहतर सड़कें बनाने को प्राथमिकता दी। चूंकि ‘बीएसपी’ यानी बिजली-सड़क-पानी कई चुनावों में मुख्य मुद्दे बनकर आए, इसलिए भी सरकारों पर सड़कें बेहतर बनाने के लिए दबाव पड़ा। सड़कें बनाना अर्थव्यवस्था को तेज करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। सड़क निर्माण से खनन, सीमेंट, इस्पात जसे उद्योगों को भी प्रोत्साहन मिलता है और बड़े पैमाने पर कुशल और अकुशल रोजगार पैदा होते हैं। मगर सड़कों का विस्तार इसलिए मुश्किल भी है, क्योंकि इससे जमीन अधिग्रहण और पर्यावरण की पेचीदा उलझनों से गुजरना पड़ता है। इसीलिए अगर इस ताजा घोषणा को छोड़ दिया जाए, तो संप्रग के पूरे कार्यकाल में राष्ट्रीय राजमार्गों में सिर्फ 10,000 किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई।
राष्ट्रीय राजमार्गो के निर्माण में इन दिनों निजी-सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) का मॉडल बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है। लेकिन पीपीपी मॉडल को अगर कामयाब होना है, तो इसमें पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है। वरना तरह-तरह के विवाद और घोटाले पैदा होंगे। महाराष्ट्र में टोल टैक्स विरोधी आंदोलन भले ही राजनीति से प्रेरित हो, लेकिन यह सरकार को भी मानना पड़ा कि सड़क बनाने और टोल टैक्स वसूलने के अनुबंधों में भारी गड़बड़ियां हैं। दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर गुड़गांव में टोल प्लाजा हटाने का फैसला भी ऐसे ही विवादों से पैदा हुआ है। ऐसे कई विवाद देश भर में राजमार्गो को लेकर हैं। अगर राजमार्गो का सचमुच विस्तार करना है, तो घोटालों के रास्ते बंद करना जरूरी है।
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  अॉटो मोबाइल नियमों में बदलाव होगा


नितिन गडकरी ने कहा
मुंबई। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने आज कहा है वह अॉटो-मोबाइल नियमों में बदलाव लाना चाहते हैं। दरअसल नितिन गडकरी चाहते हैं कि अॉटो मोबाइल के नियम में थोड़ा बदलाव करके जैव इंधन से चलने वाली कारों के लिए रास्ता साफ किया जाए। उन्होंने कहा कि संसद के अगले सत्र में सरकार कानून में बदलावों लाने का प्रयास करेगी। गडकरी का कहना है कि बदलाव करने की जरूरत है ताकि इसे वैश्विक मानकों के अनुरूप जाया जा सके। संसद सत्र में ऐसे होगा कानून में बदलाव गडकरी ने कहा संसद के अगले सत्र में संशोधिक विधेयक लाएंगे। आपको बता दें कि सरकार ने पहले ही ई-रिक्शा के लिए कानून में जरूरी बदलाव लाने की घोषणा की है। जो दो लाख लोगों के लिए रोजी-रोटी कमाने का जरिए है। इन विदेशी कानूनों का होगा अध्ययन अॉटो मोबाइल कानून में संशोधन के लिए पूर्व प्रतिनिधियों से सुझाव लिए जाएंगे। और प्रतिक्रियाओं का भी स्वागत किया जाएगा। जिसके उन्होंने कहा कि मामले पर कोई नीतिगत निर्णय लेने से पूर्व प्रतिनिधियों के सुझावों पर भी गौर किया जाएगा। गडकरी ने कहा कि मंत्रालय कानून में किसी बदलाव से पहले अमेरिका, कनाडा, ब्राजील और जर्मनी के वाहन अधिनियमों का भी अध्ययन करेगा। इंधन विकल्प भी ग्रामीण विकास मंत्रालय का भी अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे गडकरी ने कहा कि ईंधन के विकल्प तलाश करने की जरूरत है क्योंकि देश को हर साल ईंधन के आयात पर 6 लाख करोड़ रुपये और खाने के तेल के आयात पर 800 करोड़ रूपए खर्च करने पड़ते हैं। बेकार पड़ी भूमि का होगा उपयोग उन्होंने कहा कि कृषि में विविधता लाने और गांवों में बेकार पड़ी भूमि का बेहतर प्रयोग करने की जरूरत है। एथेनॉल को भिन्न स्रोतों से तैयार किया जा सकता है खासकर कपास की पुआल और गन्ने केे बायोमास से। लेकिन बायोमास का इस्तेमाल बायो डाइजेस्टर सीएनजी तैयार करने में भी किया जा सकता है।
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सीमेंट के बनेंगे राष्ट्रीय राजमार्गः नितिन गडकरी


अब बारिश में हाइवे टूटेगें नहीं। नई सरकार सभी राष्ट्रीय राजमार्ग को सीमेंट का बनाएगी। सीएनबीसी आवाज संपादक संजय पुगलिया से खास मुलाकात में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ये जानकारी दी। हालांकि इसके साथ ही उन्होने सीमेंट कंपनियों को कार्टेल नहीं बनाने की चेतावनी भी दी है।
नितिन गडकरी का कहना है कि देश भर में 60,000 करोड़ रुपये के रोड प्रोजेक्ट अटके हैं। अब तक 20,000 करोड़ रुपये के विवाद सुलझाए गए हैं। सभी अटके प्रोजेक्ट अगले 3 महीने में दोबारा शुरू करने का लक्ष्य है। 3 महीने में सभी कॉन्ट्रैक्ट दोबारा शुरू किए जाएंगे। नितिन गडकरी के मुताबिक बैंकों के रोड इंफ्रा के करीब 70,000 करोड़ रुपये के एनपीए हैं।
नितिन गडकरी ने बताया कि रोड, हाइवे के किनारे 200 करोड़ पेड़ लगाए जाएंगे। वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग अब सीमेंट और कंक्रीट के ही बनेंगे जिसका ऐलान जल्द किया जाएगा। लेकिन सीमेंट कंपनियों की सांठगांठ रोकने के लिए बिट्रूमन (डामर) की रोड बनाएंगे।
नितिन गडकरी के मुताबिक जमीन अधिग्रहण पर 27 जून को राज्यों के साथ बैठक करेंगे। जमीन अधिग्रहण कानून में संशोधन पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री लेंगे। जमीन अधिग्रहण मामले में मुआवजे को लेकर कोई समझौता नहीं होगा। साथ ही देश के अंदर बड़े पैमाने पर जलमार्ग शुरू करने की योजना है।
नितिन गडकरी ने कहा कि रोड रेगुलेटर से दिक्कतें बढ़ेंगी और मोटर व्हीकल एक्ट को खत्म किया जाएगा। ई-रिक्शा नियमों में बदलाव से गरीबों को फायदा होगा। वहीं अगर महाराष्ट्र सरकार ने कहा तो मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक 5 साल में बना सकता हूं। मुंबई ट्रांस हार्बर के लिए केंद्र से फंडिंग का भी इंतजाम करेंगे।
नितिन गडकरी का कहना है कि गंगा-यमुना फिलहाल योजना में है। दिल्ली में यमुना प्लान पर काम चल रहा है। यमुना में यात्री शिप चलाने के अलावा वॉटर स्पोर्ट्स और बोटिंग शुरू करने की योजना है। यमुना के किनारे टूरिज्म बढ़ाने की भी योजना है। वहीं गंगा के प्रति भी समर्पित इच्छाशक्ति है, इलाहाबाद-हल्दिया तक टर्मिनल बनाया जाएगा। वॉटर ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दिया जाएगा और सी-प्लेन शुरू करने की योजना है।
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ई-रिक्शा को नियमित किया जाएगा : गडकरी


नई दिल्ली !   केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को घोषणा की कि बैटरी से चलने वाली रिक्शा दिल्ली में चलती रहेगी और उन्हें नियमित करने का वादा किया है। रामलीला मैदान में ई-रिक्शा मालिकों की एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "650 वाट के मोटर वाले ई-रिक्शा को गैर मोटरीकृत वाहन के रूप में माना जाएगा। परिवहन विभाग और यातायात पुलिस कल (बुधवार) से इनका चालान नहीं करेगी।"
इससे पहले पूर्व की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल में सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय ने कुछ प्रावधानों में संशोधन किया था जिससे इस तरह के रिक्शा गैरकानूनी हो गए थे।
24 अप्रैल को जारी एक अधिसूचना के बार दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग ने ई-रिक्शा पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था।
गडकरी ने कहा, "जालसाजी रोकने के लिए ई-रिक्शा किसी अधिकृत विक्रेता से खरीदा जाना चाहिए। सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी ई-रिक्शा चालक को पुलिस अधिकारी चालान नहीं करें।"
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बेलगाम ई रिक्शा

Friday,Jul 25,2014

दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रहे ई रिक्शाओं को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का रूख स्वागतयोग्य है। अदालत का यह कहना एकदम दुरुस्त है कि नियमों के दायरे में लाए बगैर ई-रिक्शाओं को राजधानी की सड़कों पर चलाने देने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह सही है कि बड़ी संख्या में लोगों की रोजी-रोटी इससे जुड़ी है लेकिन इस नाम पर सियासत नहीं की जानी चाहिए। राजधानी की सड़कों पर दौड़ रहे लाखों वाहनों के बीच ई रिक्शाओं के उतर आने से यातायात व्यवस्था का बुरा हाल हो गया है। इनकी वजह से सड़क जाम हो रहा है, दुर्घटनाएं भी हो रही हैं। इन दुर्घटनाओं में कुछ लोगों की जान भी जा चुकी है। ई रिक्शा को लेकर कानूनी स्थिति बेहद लचर है। चूंकि यह मोटर वेहिकल एक्ट के तहत नहीं आता, लिहाजा इसके खिलाफ यातायात पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही। चिंताजनक बात यह है कि यदि इसकी चपेट में आने से किसी की मौत हो जाए, तो उसके परिजनों को कोई मुआवजा भी नहीं मिल सकता। दिल्ली की सड़कों पर वाहनों के भारी दबाव के मद्देनजर यह बहस भी चलती रही है कि यहां रिक्शों के परिचालन की अनुमति होनी चाहिए अथवा नहीं। गरीबों के रोजगार का आसान साधन बताकर रिक्शों के परिचालन की वकालत की जाती है। अब ई रिक्शाओं को लेकर भी ऐसी ही दलीलें दी जा रही हैं। लेकिन ऐसी दलीलों को आधार बनाकर पूरे शहर की सड़कों पर यातायात को चरमराने नहीं दिया जा सकता। लेकिन सियासी लोग इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने पर तुले हैं। ऐसे वक्त में अदालत का कड़ा रूख केन्द्र व दिल्ली दोनों ही सरकारों के लिए एक स्पष्ट दिशा-निर्देश की तरह है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इन्हें बेलगाम दिल्ली की सड़कों पर चलाए जाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। यदि इन्हें ऐसे ही दौड़ने दिया गया तो आने वाले दिनों में शहर की समस्याएं और बढ़ेंगी। ई रिक्शा अभी ही हजारों की संख्या में दिखाई दे रहे हैं। आने वाले दिनों में इनकी संख्या में और इजाफा होगा और सड़कों पर स्थिति बेकाबू हो जाएगी। दुर्घटनाओं में इजाफा होगा और सहूलियत के बदले इनसे मुसीबत बढ़ेगी। लिहाजा, दिल्ली सरकार को चाहिए कि वह अदालत के आदेश के मद्देनजर त्वरित कार्रवाई करते हुए इन्हें नियमों के दायरे में लाए अथवा इनका परिचालन तत्काल बंद करे।
[स्थानीय संपादकीय: दिल्ली]
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बैरियर पर सतर्कता

Thu, 02 Oct 2014

अलग-अलग प्रदेशों से लगती पंजाब की सीमा पर स्थित बैरियरों पर कार्यरत डाटा एंट्री ऑपरेटरों द्वारा गड़बड़ी करना गंभीर मामला है। आरोपी चार ऑपरेटरों का निलंबन तो जरूरी था ही, इसके साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि इतनी संवेदनशील जगह पर वसूली का गोरखधंधा कैसे वे चला रहे थे। प्रदेश की सीमा में प्रवेश के समय आबकारी एवं कर विभाग की ओर से बैरियर पर इसीलिए चेकिंग की व्यवस्था है जिससे कोई अवैध व्यापार न हो। यहां पुलिस भी मुस्तैद रहती है कि असामाजिक तत्व किसी अवैध सामान के साथ प्रदेश के अंदर न प्रवेश कर जाएं। पंजाब में नशे की समस्या विकराल रूप धारण कर गई है। पड़ोसी राज्यों खासकर हरियाणा व राजस्थान से नशे की तस्करी की खबरें बीच-बीच में सामने आती रहती हैं। कई बार तो भारी मात्रा में नशा बरामद किया जाता है। इसके अलावा त्योहारी सीजन में मिलावटी खाद्य पदार्थो का कारोबार भी जोर पकड़ लेता है। हरियाणा की सीमा पर स्थित शंभू बैरियर पर तो इस सीजन में हर साल सैकड़ों किलो मिलावटी खोआ पकड़ा जाता है। चाहे नशीले पदार्थ का मामला हो या फिर मिलावटी खाद्य पदार्थ का, इससे प्रदेश वासियों की सेहत खतरे में पड़ती है। नशे ने तो प्रदेश में बड़े पैमाने पर युवा वर्ग को इस तरह खोखला कर दिया है कि सेना से लेकर पुलिस की भर्ती तक में इसका असर दिखना शुरू हो गया है। कुछ साल पहले तक सेना भर्ती रैली में पंजाब के गबरुओं का कोई सानी नहीं था पर अब वे दौड़ में ही हांफ जाते हैं। यह स्थिति चिंताजनक है। सरकार को बैरियर पर और सतर्कता बरतने की जरूरत है। ऐसी संवेदनशील जगहों पर तो इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए कि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी करने वाला तुरंत पकड़ में आ जाए। सस्पेंड किए गए एंट्री ऑपरेटरों पर 15 रुपये वाली रसीद की जगह 250 रुपये वसूलने का आरोप है। हेल्पलाइन नंबर पर शिकायत मिलने के बाद विभाग ने यह कार्रवाई की है। ऐसे ऑपरेटर अवैध वसूली कर कुछ भी प्रदेश की सीमा में प्रवेश करवा सकते हैं। सवाल यह भी है कि जब ये इस तरह का काम कर रहे थे तो शंभू, जीरकपुर, हरसामनसा व सीताहोनो बैरियरों पर तैनात पुलिस को इसकी भनक क्यों नहीं लगी। इस गड़बड़ी के सामने आने के बाद पूरे मामले की गंभीरता से जांच के साथ ही बैरियरों पर तत्काल सतर्कता बढ़ाई जानी चाहिए।
[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]
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यातायात नियमों का उल्लंघन

Thu, 02 Oct 2014

मंदिरों के शहर जम्मू में बढ़ते यातायात के अनुरूप सड़कों का विस्तार न होने से दुर्घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वहीं यातायात विभाग भी ट्रैफिक को सुचारु बनाने के लिए नियमों का पालन करवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। केवल व्यस्त बिक्रम चौक व गांधी नगर के गोल मार्केट चौक में ही ट्रैफिक कर्मी मुस्तैदी दिखाते हुए मिलेंगे। शहर के ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां पर ट्रैफिक कांस्टेबलों की अनुपस्थिति वाहन चालकों को भी मनमर्जी करने का मौका दे रही है। यह अच्छी बात है कि बिक्रम चौक से गांधीनगर के बीच एक फ्लाई ओवर का निर्माण किया जा रहा है, जिससे काफी हद तक यातायात को सुचारु बनाने में मदद मिलेगी, लेकिन शहर में अखनूर रोड, केनाल रोड, नरवाल, सतवारी, जानीपुर हाईकोर्ट रोड आदि ऐसे कई और इलाके हैं जहां पर अक्सर जाम की स्थिति बनी रहती है। दुख की बात यह है कि इन क्षेत्रों में यातायात को नियंत्रित करने के लिए सरकार के पास कोई दूरगामी योजना नहीं है। न तो इन इलाकों में सड़कों का विस्तारीकरण हुआ है और न ही फ्लाई ओवर जैसी कोई ठोस योजना बनी है। वहीं केवल जम्मू संभाग में ही हर साल करीब एक लाख गाड़ियां रजिस्टर्ड हो रही हैं। जब तक वाहनों के अनुपात में सड़कों का विस्तार नहीं होगा तब तक दुर्घटनाओं के मामले और बढ़ेंगे तथा जाम की स्थिति से लोगों को दो-चार होना पड़ेगा। ट्रैफिक विभाग को अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव लाना होगा क्योंकि यातायात को नियंत्रण करने में इस विभाग की अहम भूमिका है। इसके लिए ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों से सख्ती से निपटा जाए। साथ ही ट्रैफिक नियंत्रण करने वाले नियमों जिनमें वाहनों पर रिफलेक्टर, हेड लाइट्स पर ब्लैक स्ट्रिप, ट्रैफिक लाइट का पालन होना आवश्यक है। अक्सर देखा गया है कि ट्रैफिक कर्मी कुछ चौराहों पर अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए खड़े होते हैं, लेकिन उनकी कार्रवाई केवल कामर्शियल वाहनों तक ही सीमित होती है। अगर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वाले निजी वाहन चालकों पर कार्रवाई हो तो उससे भी ट्रैफिक को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
[स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर]
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उचित फटकार

Sun, 19 Oct 2014

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का स्कूली बसों की जांच डीटीओ से करवाने का आदेश सरकार को आइना दिखाने वाला है। पंजाब सरकार स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सरकार ने दस माह पूर्व पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया था कि रोड सेफ्टी नीति का खाका तैयार कर लिया गया है, परंतु आज भी सरकार रोड सेफ्टी नीति नहीं बना सकी। यही कारण है कि गत दिवस हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए अगली सुनवाई पर इस नीति के बारे में जानकारी देने को कहा है। प्रदेश की सड़कों पर स्कूली बस में आने-जाने वाले बच्चों की जिंदगी कितनी सुरक्षित है इसका अंदाजा तो आए दिन होने वाले हादसों से आसानी से लगाया जा सकता है। हाल-फिलहाल तो ये हादसे और बढ़ गए हैं। इन हादसों के पीछे निश्चित रूप से लापरवाही ही सबसे बड़ा कारण है। पिछले दिनों हुए हादसों में कभी यह सामने आया कि स्कूल बस में कंडक्टर नहीं था, किसी में सीट बेल्ट नहीं थी तो कहीं स्कूल बस बिना किसी टीचर के ही बच्चों को छोड़ने जा रही थी। हैरानी की बात यह है कि ऐसा तब हो रहा है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश जारी कर रखे हैं। ऐसा कदाचित इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकार व प्रशासन ने स्कूलों, खासकर निजी स्कूलों पर नजर रखना संभवत: छोड़ दिया है। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि गत दिवस प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट को यह बताया कि बसों से स्कूल जाने वाले बच्चों की सुरक्षा के लिए सरकार ने सेफ स्कूल वाहन नीति बनाई है और इसके तहत स्कूल प्रबंधन को ही स्कूल बसों को तय प्रावधानों के तहत चलाए जाने की जिम्मेदारी दी गई है। जिस प्रकार से स्कूल बसों में अनियमितताएं सामने आ रही हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि स्कूल प्रबंधन अपना काम सही ढंग से नहीं कर रहे हैं। सरकार को अतिशीघ्र रोड सेफ्टी नीति तो बनानी ही होगी, साथ ही हाईकोर्ट के आदेशों का पालन भी सुनिश्चित करना चाहिए, क्योंकि बात जब मासूम स्कूली बच्चों की सुरक्षा की हो तो लापरवाही की कहीं कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]
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फर्जी लाइसेंस

]Tue, 21 Oct 2014

परिवहन विभाग में व्यावसायिक वाहनों के लाइसेंस के फर्जीवाड़े की घटना ने एक बार फिर विभागीय कार्यशैली को कठघरे में खड़ा किया है। जिस प्रकार से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर चार सौ से अधिक लाइसेंस जारी किए गए उससे दलाल व विभागीय कर्मचारियों के बीच मिलीभगत के आरोपों पर मुहर लगती है। दरअसल, परिवहन विभाग में दलाल प्रथा बुरी तरह हावी है। आम आदमी को भले ही परिवहन विभाग में एक लाइसेंस बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़े लेकिन ऐसा कोई काम नहीं जिसका हल इन दलालों के पास न हो। इन दलालों की विभाग के भीतर इतनी गहरी पकड़ है कि चुटकियों में ही इनके सभी कार्य हो जाते हैं। ये हालात तब हैं जब विभागीय मंत्री से लेकर अधिकारी तक विभाग में दलाली प्रथा पर अंकुश लगाने की बात कह चुके हैं। दरअसल, परिवहन विभाग में दलाल प्रथा दशकों से हावी है। आलम यह है कि परिवहन कार्यालय में घुसने से पहले ही आमजन को इन दलालों से दो चार होना पड़ता है। लचर विभागीय कार्यशैली के चलते आमजन को मजबूरन इन दलालों का सहारा लेना पड़ता है। दलालों और कर्मचारियों का यह रिश्ता इतना गहरा है कि फर्जीवाड़ा करते हुए किसी को कानों कान खबर तक नहीं होती। परिवहन विभाग में कंप्यूटराइज्ड व्यवस्था होने के बाद वर्षो से विभाग में चल रहे फर्जीवाड़े की एक के बाद एक परतें खुलकर सामने आ रही हैं। जिस प्रकार से फर्जी कागजातों के बूते इतने अधिक संख्या में व्यावसायिक लाइसेंस जारी हुए, इससे यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि विभाग में फर्जीवाड़ा सिर चढ़ कर बोल रहा है। मामला गंभीर इसलिए है कि ये लाइसेंस व्यवसायिक वाहनों के लिए जारी हुए हैं। यदि लाइसेंस गलत लोगों को जारी हो गए तो कहा जा सकता है कि आमजन की जिंदगी अनाड़ियों के हाथों सौंप दी गई। कारण, इसी लाइसेंस के आधार पर ये लाइसेंसधारक यात्री अथवा मालवाहक वाहन चलाएंगे। इससे भी गंभीर यह है कि विभाग इस मामले मे रिपोर्ट तक दर्ज करने से बचता रहा है। इस मसले को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। आलम यह है कि अब राजनीतिक व्यक्तियों और अधिकारियों के रिश्तेदारों को ही विभाग में बैकडोर एंट्री देकर इस परिपाटी को आगे बढ़ाया जा रहा है। सरकार यदि सही मायनों में भ्रष्टाचार रोकने के प्रति कटिबद्ध है तो इस ओर गंभीरतापूर्वक कदम उठाने होंगे। विभाग में दलाल प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए ठोस नीति बनानी होगी। दलालों को लाइसेंस देने के लिए एक बार जो नीति बनाई गई थी उस पर फिर से मंथन किया जाना चाहिए। आमजन को विभाग में सुविधाएं देने के किए जाने वाले दावों को धरातल पर उतारने की जरूरत है। इस बात पर फोकस किए जाने की भी जरूरत है कि कर्मचारियों का संवाद जनता से हो न कि दलालों से। सरकार को इसके लिए सीधे अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करनी होगी, नहीं तो विभाग में इस तरह का फर्जीवाड़ा आगे नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं।
[स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]
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गरीब देश को अमीर बनाने वाला है बजट


बजट में मेरी लगभग सौ फीसद मांगों को मान लिया गया है। कुछ में तो अपेक्षा से अधिक आवंटन मिला है। इसके लिए मैं वित्त मंत्री का शुक्रगुजार हूं। यह अर्थव्यवस्था व रोजगार को बढ़ाने वाला क्रांतिकारी बजट है। इसमें किसान, ई-गवर्नेस व टेक्नोलॉजी पर जोर है। यह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप और गरीब देश को अमीर बनाने के लिए है।
ग्रामीण विकास व सड़कों के लिए 55-60 फीसद धन मिला है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को 14,389 करोड़ मिलने से अब रुका काम तेज होगा। महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप को सस्ते कर्ज का लाभ अब 250 जिलों को मिलेगा। ग्रामीण उद्यमिता कार्यक्रम को बल मिलने से लाखों ग्रामीणों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे। गांवों में आवास निर्माण के लिए एनएचबी को 8000 करोड़ रुपये का आवंटन अपेक्षा से अधिक है। वाटरशेड के तहत चेकडैम बनाने की ‘नीरांचल योजना’ भी जोरदार है। 27 राज्यों के 272 पिछड़े आदिवासी जिलों के लिए बीआरजीएफ में मदद बढ़ाई गई है। स्वच्छ पेयजल के लिए 3600 करोड़ मिले हैं। हालांकि जरूरत बहुत बड़ी है, जिसे पूरा करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर बांड जैसा प्रस्ताव हो सकता है।
सड़कों के लिए 37 हजार करोड़ आवंटन के साथ 3पी इंस्टीट्यूट का प्रावधान किया गया है। बांड के रूप में दो फीसद ब्याज पर पैसा खड़ा होगा। कल ही हमने 16 हजार करोड़ रुपये की राजमार्ग परियोजनाएं क्लियर की हैं। इससे पहले चालीस हजार करोड़ की परियोजनाओं की अड़चनों को दूर किया जा चुका है। शेष 1.89 लाख करोड़ की 181 परियोजनाओं की बाधाओं को भी जल्द ही दूर कर दिया जाएगा। लगभग दो साल में प्रतिदिन 30 किलोमीटर सड़कें बनने लगेंगी। इससे डेढ़-दो साल में जीडीपी में डेढ़-दो फीसद का इजाफा होगा।
गंगा में इलाहाबाद से हल्दिया तक 1620 किलोमीटर जलमार्ग के विकास के लिए 4200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इससे नदी को कम से कम 45 मीटर चौड़ा व पांच मीटर गहरा किया जाएगा। साथ ही, 23 जगहों पर छोटे-बड़े टर्मिनलों का निर्माण किया जाएगा, जहां किनारे होटल, रेस्त्रां, हैंडलूम व हस्तशिल्प केंद्र आदि खुलेंगे। बंदरगाह क्षेत्र में 80 हजार करोड़ का नया निवेश आएगा। भारत में बड़े पैमाने पर शिप बिल्डिंग का काम शुरू होगा।